गोलगप्पे वाला हिंदी कहानी -पढ़ें ढेर सारी नैतिक कहानियाँ हिंदी में

 

 एक लम्बे समय पहले एक गाँव  में आदित्या और भावना नामक पति पत्नी रहते थे।  उनका चित्रा नामक एक सुन्दर सी बेटी थी ,एक छोटे से  घर में रहते थे। आदित्या एक बहुत नेक इंसान था और जितना उसके पास था उतने में ही  वाला था। वो पानीपुरी बेच  के आये हुए पैसो से ही  परिवार की देख भल करता था। हर रोज सुबह उठके पानीपुरी बनाके बेचने जाता था। 

पानीपुरी ,पानीपुरी स्वादिष्ट पानीपुरी एक बार  काफी नहीं होता है, बार बार खाने का मन करता है। दस रूपये का एक प्लेट आईये आईये। 

ऐसे पूरी गॉँव में जाते हुए बेचता था। उसके पानीपुरी स्वादिष्ट रहने पर सभी लोग वहां खाना पसंद करते थे। 

रोज की तरह वह एक दिन पानीपुरी बेच के अँधेरा होने घर जाते है, जब उसे रस्ते में कुछ लोग भागते हुए  हैं। उसके पलक झपकते ही  गायब भी हो जाते हैं। कौन थे वो लोग? क्यों भाग रहे थे ?और इतने में ही कहाँ गायब हो गए ?ऐसे वो अपने आप में सोच रहा था। की उसे  बगल में एक सूटकेस दिखाई देता है। 

 ये किसका सुटकेरस है ? शायद किसी ने खो दिया होगा ! सुबह मैं इसको जमींदार को दे देता हूँ  ओ इसको इसके मालिक तक पहुंचा देंगे। ऐसे सोच के ओ सूटकेस अपने साथ अपने घर ले जाता है।

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आदित्या की पत्नी ये सूटकेस देख कर पूछती है की ये किसका सूटकेस है जी ?

मुझे नहीं पता आते समय रस्ते में मिला था मुझे। 

क्या है सूटकेस में ?

नहीं ,मुझे नहीं पता। मैंने देखा ही नहीं।

अच्छा, फिर रुकिए पहले मई ये देखती हूँ , की इसमें है क्या ? और ऐसे सूटकेस खोलती है। 

सुनिए... इधर आके देखिये तो इसमें है क्या ?

हाँ ,क्या है ?

पास आकर देखने पर वो   हिरे ,मोती और सोने से भरा हुआ था। 

देखा आपने कितने हिरे ,कितना सोना है इसमें अब हमें कभी हमें वापस मेहनत करने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। 

भावना , ये सूटकेस हमारा नहीं है किसी ने खो दिया है इसे कल सुबह जमींदार के हवाले करने इसे ले कर आया हूँ। 

 तो आप क्या इसे जमींदार को लौटाएंगे ?.

हाँ। 

मैं ये स्वीकार नहीं करुँगी ,हम ये सूटकेस हमारे पास ही रखेंगे। आपको मेहनत करने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। हम आख़िरकार बहुत खुश रहेंगे। 

अपनी पत्नी का उस बात स्वीकार न  करने पर अपनी पत्नी को दुःख न पहुँचाने के लिए कुछ नहीं कहता है और सोच में पद जाता है। अगर मैं हिरे और मोती को लेता हूँ तो गलत है और अगर मेरी पत्नी  सब लेती है , गलती नहीं है ना ऐसे सोचकर अपनी पत्नी से कहता है। 

किसी और  हुआ मुझे खर्च करना ठीक नहीं लगता  है मैं अपने पानीपुरी का दुकान ही चलाऊंगा ,तुम्हे जो पसंद तुम वही करो। ऐसे कहने पर उसकी बीबी बहुत खुश होती है। 

कुछ दिन बाद उसकी पत्नी मिले हुए हिरे ,मोती और सोना बेचके बड़ा सा घर खरीदती है और वे सब उसी घर में चले जाते हैं मगर आदित्या अपना पानीपुरी का व्यापार नहीं छोड़ता है। 

एक दिन जमींदार के पास एक औरत आती है। प्रभु ,प्रभु। .मेरे  घर में मेरे सरे हिरे ,सोना सब चुरा लिया है मुझे समझ में नहीं आ रहा की मैं क्या करूं। इसीलिए आपके पास भाग कर आयी कृपया मेरी मदद कीजिये प्रभु। 

फ़िक्र न करो माता मेरे पर भरोसा  करके आप चले जाओ। मैं उस चोर को पकड़ के आप को बुलाऊंगा। 

जमींदार के ऐसे कहने पर ओ  औरत उनपे भरोसा करके वहां से चली  जाती है। उसके बाद कुछ ही दिन में जब आदित्या और  उसका परिवार जब एक बड़ा सा घर लेकर उसमे रहने  लग जातें हैं ,तो गॉँव में उसी के बारे में खुसुर -फुसुर शुरू हो जाती है और ये बात जमींदार तक पहुँच जाति है। एक साधारण पानीपुरी बेचने वाला एकदम से इतना बड़ा घर कैसे खरीद पाया। 

पता नहीं प्रभु, गाँव  के सरे लोग भी आश्चर्य चकित होके इसी के बारे में बात कर रहें हैं। ऐसे ही मैं सुनके आपको बताया। 

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ठीक है , उन दोनों को इधर लेकर आओ। 

जी प्रभु ! 

जमींदार के कहने पर सेवक उन दोनों को जमींदार के पास लेकर  जातें हैं। 

आदित्या , मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है। तुम्हारे व्यापार के बारे में भी  पता है , तुम्हे कुछ पूछने के लिए यहाँ बुलाया है। 

पूछिए प्रभु। 

कुछ नहीं ,तुम इतने कम समय में इतना पड़ा घर कैसे खरीदे सच सच बताओ।( आदित्या की पत्नी मन ही मन सोचती है क्या ये पूछने के लिए हमें यहाँ तक  बुलाएँ हैं ? मुझे ही बताना होगा कुछ वरना मेरे पति सब सच बता देंगे। )

मेरे पति का कमाया हुआ पैसा हम  बचा बचा के ये घर खरीद पाएं हैं प्रभु। ऐसे हिम्मत से बोलती है ताकि किसी को सक नहीं आये। 

माता मैं आप सभी पर इंजाम लगाने के लिए यहाँ पर नहीं बुलाया हूँ। मेरे पास  आकर बोली है की मेरे पास से कोई हिरे और गहना चोरी कर लिया और उसी समय में आपने ऐसा बड़ा घर लिया हालत मुझे आपसे ऐसे पूछने के लिए मजबूर कर रहें हैं। तो सच कहिये की आपको इतने पैसे अचानक  से कहाँ से मिले। 

(आदित्य मन  सोचता है ,की अगर मैं अब भी चुप रहा तो ओ  एक बहुत बड़ी गलती होगी। और उस औरत के दुःख का कारण में ही हो जाऊंगा। )

ऐसे सोचकर आदित्या जमींदार को सच बताने का फैंसला करता है। 

मुझे  प्रभु। 

 जो कुछ भी हुआ ओ  जमींदार को बताता है। और तुरंत ओ  गहनों वाल सूटकेस उनके हवाले कर्त देता है। 

तुम्हे गलती का अहसास हुआ है ,तुमने सच बता के और ये गहने लाके दे दिए और इसी लिए मैं तुम्हे तुम्हारी पहली गलती  लिए माफ़ कर दूंगा और दण्डित नहीं करूंगा। लेकिन यद् रखना आदित्य गलती न करना जितना जरुरी है उतना ही जरुरी है गलती करने वालो को रोकना। ये कभी मत दोहराओ। 

जमीन्दार के माफ़ करने पर आदित्या उनका कृतज्ञ  वहां से चला  है। और जमींदार उन गहनों को उस औरत के हवाले कर देता है। 

 आदित्या  हमेशा की तरह  पानीपुरी का व्यापार करता है और उसी से अपना परिवार चलता है। 


सिख -

गलती नहीं करना है ये सभी को मालूम है ,
लेकिन गलती करने वालो को भी रोकना जरुरी  है। 

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