बचपन के दोस्त : Childhood Friend- बचपन की ओ यादें

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परिचय 

नमस्कार     दोस्तों  मै हूँ चन्दन और मैं एक बार फिर आप सभी का अपने इस नए ब्लॉग पोस्ट पर  स्वागत करता   हूँ। जिसमे आज हम एक नई कहानी के बारे में बात करने वाले हैं।  और मुझे उम्मीद हैं की आपको इस कहानी के  अपने बीते दिन यद् आ जायेंगे और कुछ समय के लिए आप ये सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की काश आज भी ो दिन हमारा होता। 

कहानी 

जब मेरा जन्म हुआ तो मुझे नहीं मालूम था की मई कौन हूँ, मेरा नाम क्या है, मई किस धर्म का हूँ कुछ भी मालूम नहीं था और न उस समय कुछ मिला ऐसा जिससे की लालच हो बस मिली तो माता-पिता की ओ बेपनाह मोहब्बत जिसके सामने संसार की सारी खुशियां कम पड़ जाती हैं। माँ का ओ प्यारा सा आँचल जो कहने को तो छोटा है पर हकीकत में ओ  इतना बडा है की उसमे सारा संसार भी समा जाये तब भी ओ  कम नहीं पड़ेगा।क्योंकि इसमें माँ की ममता और प्यार होता है।  दादा-दादी की गोद में खेलना और पिताजी की कंधो पर बैठ कर घूमना कितना मजा आता था। 
कुछ दिन बीते मै दो साल का हो गया और चलने लगा था। फिर मोहल्ले के दो दोस्त बन गए सब साथ खेलते थे जैसे जैसे दिन बितत्ता गया दोस्त बढ़ते गए और मेरी उम्र भी बढ़ते गयी अब दोस्तों के साथ समूह में खेलने लगे कभी कंचे खेलते तो कभी कबड्डी तो कभी गिल्ली डंडा। 
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पर ये खेल ऐसे होते थे जिसकी वजह से कई बार मर भी कहानी पड़ती थी क्योंकि गिल्ली डंडे में कई  बार सर पे चोट लगने से सर फट जाती थी। जिसके चलते मामला मार पिट तक आ जाती थी। और कबड्डी के क्या ही कहने थे ,जब सामने वाला ज्यादा अंक कर लेता था तो उससे ज्यादा अंक हमलोग करने की कोशिश करते थे और जब नहीं कर पाते थे, तो खेल खेल में ही गाली दे जाते थे ओ भी इस तरह से। ..

सेल कबड्डी आश लाल 
मर गया तेरा बाप...तेरा बाप...तेरा बाप ........

या फिर सामने वाले समूह के लड़के का नाम लेकर जैसे अगर किसी का नाम मोहित रहा तो ,बोलते थे। 

सेल कबड्डी आश लाल 
गिर कर मर गया मोहित लाल। 

तो जाहिर सी  बात हैं की जब किसी को कोई ऐसे  तो झगड़ा तो होगा ही। इसके अलावे एक खेल और खेलते थे जिसे शायद आप सभी भी जानते होंगे। हमलोग उसे दाल-पती कहा करते थे जिसमे एक लड़के को चोर बना दिया जाता था और एक लकड़ी को दूर फेक दिया जाता था और बाकि के सभी लड़के पेड़ के ऊपर चढ़  जाते थे। लेकिन अगर  लड़का उस लकड़ी को लेकर निर्धारित जगह पर लाख  किसी लड़के  जो की उसके साथ खेल रहा है उसे छू  कर लकड़ी को सूंघ लिया तो छुए गए लड़के को चोर बनना होता था लेकिन अगर उसके सूंघने से पहले किसी और लड़के ने उसे सूंघ लिया तो दुबारा उसी को चोर बनना पड़ता  था। परन्तु उम्र बढ़ने पर ये खेल भी छूट गया अब हमारे माता-पिता हमें विद्यालय भेजने लगे जहाँ हमें टास्क दिया जाता था और खेलने में अगर टास्क को पूरा करना भूल गए तो बहुत मर  पड़ती थी ,इसलिए विद्यालय जाना पसंद नहीं था। अगर जाता भी था तो पढाई से ज्यादा इसमें दिमाग लगाता था की किस तरह से यहाँ से भागनी है की बाहर जाकर खेलूं। विद्यालय गांव में ही था और जब खिड़की के बाहर गांव के लड़के को जब खेलते देखता था तो और भी भागने का मन करता  था ,की मै भी भाग जाऊं और उनके साथ खेलूं। 
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पर बेवस हो जाता था पर जैसे ही छूटी होती तुरंत निकल जाता था खेलने के लिए। जिसके चलते बहुत दिनों तक टास्क पूरा नही करके ले गया जिसके कारण हर दिन मर पड़ती थी, फिर मैंने विद्यालय जाना ही छोड़ दिया।  हर दिन विद्यालय के समय से घर से बाहर निकलता किताब लेकर और किताब को एक पत्ते की ढेर में छुपा देता था और जैसे ही विद्यालय से छुट्टी होती ै भी बाकि लड़को की तरह किताब लेकर घर आ जाता था। और ऐसे ही बहुत दिनों तक करता रहा लेकिन घर वालो को मालूम नहीं चला , परन्तु एक दिन पिताजी ने विद्यालय के समय में खेलते देख लिया और बिना मुझे कुछ बोले विद्यालय चले गए और शिक्षक से पूछे की मेरे बारे में और जानकारी ली की मै  कितने दिनो से  विद्यालय नहीं आ रहा हूँ। पूरी बात जानने के बाद ये तो तय था की उन्हें गुस्सा बहुत आया होगा। परन्तु उन्होंने मुझे एक थप भी नहीं मारा सिर्फ इतना बोले की तुम कब से विद्यालय नहीं जा रहे हो ? इतना सुनते ही मैं जान गया की हकीकत मालूम हो गया है। डर से मेरे हाथ पांव कापने लगे और मई जोर से रोना शुरू कर दिया और कहने लगा रोते हुए की अब से ऐसा नहीं करूंगा और हर दिन विद्यालय जाऊंगा। और सुबह जब विद्यालय का समय हुआ तो मै विद्यालय चला गया। जब मै विद्यालय पहुँचा तो शिक्षक मुझे देख कर बोले.......
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इतने दिनों से कहाँ थे विद्यालय क्यों नहीं आ रहे थे ? ओ इस तरह से पूछ रहे थे की उनकी बातो में गुस्सा नहीं बल्कि एक अलग सी मिठास लग रहीं थी। इसलिए मैंने भी उन्हें बोल दिया ,आप बहुत टास्क दे देते हैं में खेल भी नहीं पाता हूँ और जब पूरा नहीं करता हूँ तो पीटते हैं। ये बात सुनकर शिक्षक बोले टास्क ज्यादा नंही तुम्हारी मेहनत कम है और म्हणत करो। ये सुनकर तो मेरे होश ही गायब हो गए। मुझे लगा फिर तो मुझे खेलने का कोई समय ही नहीं मिलेगा। फिर शिक्षक मुझे वहां ले गए जहाँ कुछ मजदुर कड़ी मेहनत कर रहे थे। उन्हें दिखाते हुए शिक्षक बोले देखो इन्हें अगर तुम पढाई नहीं करोगे तो तुम्हे भी इसी तरह से चील-चिलाती धुप में काम करना होगा। तब से  दिमाग में  आ गयी की अब अच्छे से पढाई करनी है। और फिर  इसके बाद मै कभी विद्यालय के टास्क से नहीं डरा और हर दिन टास्क पूरा करके विद्यालय जाने लगा। 

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